Kavita Jha

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अपनी ही ख्वाहिशें (कविता) #लेखनी दैनिक काव्य प्रतियोगिता -06-Jun-2023

अपनी ही ख्वाहिशें ( कविता)

मजा आ रहा है मुझे
एक के बाद एक
अपनी ही ख्वाहिशों को
मारने में
उनका गला घोंटने में
अपने परिवार
और
अपने चाहने वालों को
खुश करने के लिए
कितने जख्म मैंने खुद को हैं दिए
किसी को यह जानने की
फुर्सत कहाँ है
बस एक डायरी क्या मिली मेरी
न जाने कैसे कैसे नाम रख दिए
इस जमाने ने मेरे
***
कविता झा काव्य 

# लेखनी दैनिक काव्य प्रतियोगिता 

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6 Comments

Gunjan Kamal

08-Jun-2023 06:49 AM

👏👌

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Sarita Shrivastava "Shri"

07-Jun-2023 09:36 AM

वाह! बेहतरीन सुन्दर विचार प्रस्तुति👌👌🌹🌹

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बेहतरीन भाव

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